अध्याय1 श्लोक44 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 1 : दोनों सेनाओं का विवरण और अर्जुन का युद्ध से विषाद

अ 01 : श 44

अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम्‌ ।
यद्राज्यसुखलोभेन हन्तुं स्वजनमुद्यताः ॥

संधि विच्छेद

अहः बत महत् पापं कर्तुं व्यवसिता वयम्‌ ।
यत् राज्य सुखलोभेन हन्तुं स्वजनम् उद्यताः ॥

अनुवाद

अहो (हा)! आश्चर्य कि हम [बुद्धिमान होकर भी] इस जघन्य पाप करने को तैयार हैं जो राज्य और सुख के लोभ में अपने ही स्वजनों का वध करने को तत्पर हैं|

व्याख्या