अर्जुन उवाच
परं ब्रह्म परं धाम पवित्रं परमं भवान् ।
पुरुषं शाश्वतं दिव्यमादिदेवमजं विभुम् ॥
आहुस्त्वामृषयः सर्वे देवर्षिर्नारदस्तथा ।
असितो देवलो व्यासः स्वयं चैव ब्रवीषि मे ॥
संधि विच्छेद
परं ब्रह्म परं धाम पवित्रं परमं भवान् ।
पुरुषं शाश्वतं दिव्यम् आदिदेवम् अजं विभुम् ॥
आहुह तवं ॠषयः सर्वे देवर्षि नारदः तथा ।
असितः देवलः व्यासः स्वयं च एव ब्रवीषि मे ॥
अनुवाद
अर्जुन ने कहा: आप परम ब्रम्ह, परम धाम और परम पवित्र हैं| आप अजन्मा, आदि देव(सबसे पुरातन), दिव्य शाश्वत परमात्मा हैं| नारद, असित, व्यास आदि सभी ऋषिगण ने आपकी इस महिमा का वर्णन किया है| आज आपने स्वयं के श्रीमुख से इसका उल्लेख किया|
व्याख्या
इन श्लोकों के पहले करीब ३८२ श्लोक है उसमे से करीब ३०० श्लोकों में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को जीवन,आत्मा, श्रृष्टि, कर्म, ज्ञान, तपस्या और योग के रहस्यों का वर्णन किया| अध्याय ७, ८ और ९ में भगवान ने अपने दिव्य गुणों और अनंत शक्तियों का उल्लेख किया|
इतने गुढ़ रहस्यों और और अप्रतिम ईश्वरीय गुणों के वर्णन से अर्जुन को अब यह एह्साह हो गया जो एक मनुष्य से दिखने वाले श्री कृष्ण को साधारण मनुष्य या कोई देवता नहीं बल्कि स्वयं परमात्मा और सम्पूर्ण सृष्टि के रचयिता और पालनकर्ता हैं|
यह जानकर कि स्वयं ईश्वर उसके सम्मुख हैं अर्जुन भाव विह्वल हो उठता है, अपने हृदय में श्री कृष्ण को धारण कर उनकी महिमा का वर्णन करता है | इस दो श्लोकों में अर्जुन के वही भक्ति पूर्ण भाव प्रकट हो रहे हैं