अध्याय10 श्लोक15 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 10 : विभूति योग

अ 10 : श 15


स्वयमेवात्मनात्मानं वेत्थ त्वं पुरुषोत्तम ।
भूतभावन भूतेश देवदेव जगत्पते ॥

संधि विच्छेद

स्वयं एव आत्मना आत्मानं वेत्थ त्वं पुरुषोत्तम ।
भूतभावन भूतेश देवदेव जगत्पते ॥

अनुवाद

[अर्जुन ने कहा] हे पुरुषोतम, हे जगतपति(सम्पूर्ण जगत के स्वामि), हे सभी जीवों के ईश्वर(सर्वेश्वर), सबके रचयिता, हे देवों के देव, आपके बारे स्वयं आप ही [पूर्ण रूप से] जान सकते हैं [कोई अन्य नहीं]

व्याख्या

पिछले श्लोक से आगे इस श्लोक में अर्जुन ने स्वीकार किया कि श्री कृष्ण को पूर्णता से कोई नहीं जान सकता, न देवता, न दानव और न मनुष्य ही| श्री कृष्ण स्वयं ही अपने आप को जान सकते हैं कोई अन्य नहीं|

अब तक हम श्री कृष्ण(श्री विष्णु) का जो भी रूप जानते हैं वह उनके विश्वरूप का एक अंश मात्र होता होता है जो वह किसी अवतार के रूप में जीवों के सामने प्रकट करते हैं|