अध्याय10 श्लोक20 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 10 : विभूति योग

अ 10 : श 20

अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः ।
अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च ॥

संधि विच्छेद

अहम् आत्मा गुडाकेश सर्वभूताशय स्थितः ।
अहम् आदिः च मध्यं च भूतानाम् अन्त एव च ॥

अनुवाद

हे गुडाकेश(अर्जुन)! मै सभी जीवों के हृदय में स्थित आत्मा हूँ तथा सभी जीवों का आरम्भ(आदि), मध्य और अन्त भी मै ही हूँ|

व्याख्या

अर्जुन की भक्ति और पवित्रता से प्रसन्न होकर भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन का आग्रह स्वीकार किया| अर्जुन ने भगवान से यह आग्रह किया कि चूँकि उनका वास्तविक स्वरूप अनंत, अनादि और गुणों से परे है जिसे मनुष्य तों क्या देवता भी ग्रहण नहीं कर सकते, इसलिए श्री कृष्ण उन स्वरूपों का वर्णन करें जिसे जन साधारण के द्वारा समझा जा सके|

भगवान श्री कृष्ण ने तब आग्रह स्वीकार किया और अपने स्वरूप का वर्णन प्रारंभ किया| अपने विस्तार का वर्णन आरंभ करने के पहले इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने अपने सबसे महत्वपूर्ण शक्ति का वर्णन किया|
श्री कृष्ण ने कहा कि सभी भौतिक जीवों में व्याप्त आत्मा उनका ही स्वरूप है| इसके अलावा भगवान ने उस सनातन सत्य की घोषणा की कि इस पुरे ब्रम्हांड में सभी जीवों के प्रारंभ,मध्य और अन्त वह स्वयं है| अर्थात एक जीवात्मा शुरू से अन्त तक ईश्वर में ही स्थित रहता है|

यह दोनों तथ्य हलाकि बहुत साधारण और सीधी भाषा में कहे गए हैं लेकिन दोनों तथ्य श्रीमद भगवद गीता ही नहीं बल्कि सनातन धर्म की सबसे मूल सिधान्तों में से एक हैं| उससे भी महत्वपूर्ण यह कि ये दोनों सिद्धांत अत्यंत गुढ़ और कठिन हैं|
श्री कृष्ण कहते हैं "मैं जीवों के हृदय में स्थित आत्मा हूँ", एक साधारण मनुष्य अगर इसे पढ़े तों यह अत्यंत कधित है कि उसे कुछ समझ आ जाए| सीधा प्रश्न उठेगा कि आखिर कैसे?

यह स्वाभाविक है क्योंकि इस प्रश्न का उत्तर न तों सीधा और न ही आसान| इस प्रश्न के उत्तर के लिए ब्रम्ह, आत्मा ,ब्रम्ह और आत्मा के बीच का सम्बन्ध, ब्रम्ह और परमात्मा श्री कृष्ण के बीच का सम्बन्ध समझना आवश्यक है|

तथ्य यह है कि ब्रम्ह भगवान श्री कृष्ण की दो मूल शक्तियों ब्रम्ह और माया में से एक शक्ति है| माया से भौतिक जगत का निर्माण हुआ है और ब्रम्ह से सभी आत्माओं का| ब्रम्ह और माया पुरे ब्रम्हांड में विद्यमान है और इनके संयोग से प्रकट जीव होते हैं| जीव आत्मा ब्रम्ह के सागर में वैसे ही स्थित होता है जैसे जल की एक बूंद सार में| चूँकि ब्रम्ह अनंत है इसलिए आत्मा भी अनंत है| और ब्रम्ह अनंत है क्योंकि यह ईश्वर की मूल शक्ति है. | ईश्वर अनंत है तों ब्रम्ह भी अनंत है| आत्मा जीवों के हृदय में hस्थित सुषुम्ना नाडी में केंद्रित होता है|

श्री कृष्ण से ब्रम्ह, ब्रम्ह से आत्मा, आत्मा स्थित हृदय में| इस प्रकार ऊपर के श्लोक का अर्थ स्पस्ट होता है|