संधि विच्छेद
रुद्राणां शंकरः च अस्मि वित्तेशः यक्षः राक्षसाम् ।
वसूनां पावकः च अस्मि मेरुः शिखरिणाम् अहम् ॥
अनुवाद
रुद्रों में मैं शंकर हूँ, यक्ष और राक्षसों में कुबेर हूँ |वसुओं में मैं अग्नि हूँ और पर्वतों में मेरु हूँ|
व्याख्या
शास्त्रों में रुद्रों की संख्या ११ बताई गई है, हलाकि भिन्न भिन्न ग्रंथों में इनके नाम में अंतर है| रामायण में ऋषि कश्यप और आदिति के ३३ पुत्र बताये गए जिनमे १२ आदित्य, ११ रूद्र, ८ वशु और ३ अश्विन इस प्रकार कुल मिलाकर ३३ देवता हैं|
विष्णु पुराण में ग्यारह रुद्रों के नाम इस प्रकार हैं
१. मन्यु
2 मनु
3 मह्मसा
4 महान
5 शिव
6 ऋतुध्वज
7 उग्ररेता
8 भव
9 काम
10 वामदेव
11 धृतव्रत
आठ वसु हैं ,
१. पृथ्वी
२ अग्नि
३ वायु
४. वरुण,
५ आदित्य(सूर्य)
६ द्योस (आकाश)
७ चंद्रमास
८ नक्षत्रिनी
११ रुद्रों में भगवान शिव मुख्य हैं और आठ वसुओं में अग्नि मुख्य| भगवान श्री कृष्ण ने इस श्लोक में यह स्पस्ट किया कि भगवान शिव और अग्नि उनके ही रूप हैं| इसी श्लोक में आगे भगवान श्री कृष्ण ने यह वर्णित किया है इस ब्रम्हांड के सभी पर्वतों में वह मेरु पर्वत है| हमारे शास्त्रों में वर्णित उल्लेखों के अनुसार मेरु पर्वत कोई पृथ्वी पर स्थित पर्वत नहीं बल्कि इस ब्रम्हांड के ठीक बीच में रीढ़ की हड्डी के समान स्थित है| इस व्याख्या के अनुसार पूरा ब्रम्हांड कई ब्रम्हांडो का समन्वय है जो मेरु पर्वत के चारो ओर गोलाकार सम ध्रुवीय रूप में स्थित हैं|
कुछ विद्वान मेरु पर्वत से हिमालय का भी अर्थ लगाते हैं|