संधि विच्छेद
पुरोधसां च मुख्यं मां विद्धि पार्थ बृहस्पतिम् ।
सेनानीनाम् अहं स्कन्दः सरसाम् अस्मि सागरः ॥
अनुवाद
हे पार्थ(अर्जुन)! यह जान लो कि पुरोहितों में मैं पुरोहित शिरोमणि बृहस्पति हूँ, | सेनानायको में मै स्कन्द(कार्तिकेय) हूँ औऔर जलाशयों में मैं समुद्र(सागर) हूँ|
व्याख्या
बृहस्पति देवताओं के पुरोहित हैं और उन्हें सभी पुरोहितों में अग्रणी अर्थात सभी पुरोहितों का मुखिया माना जाता है|
स्कन्द भगवान शिव के अग्रज(बड़े) पुत्र और श्री गणेश के बड़े भ्राता हैं| इन्हें कार्तिकेय और मुरुगन के नाम से भी जाना जाता है| स्कन्द देवताओं के सेनानायक हैं और असुरों के साथ संग्राम में यह देवताओं का नेतृत्व करते हैं|
इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने यह स्पस्ट किया कि ब्रहस्पति और स्कन्द उनकी ही विभूति हैं|
निर्जीव पदार्थों में, सभी जल श्रोतो में समुद्र भगवान श्री कृष्ण की विभूति से निर्मित है|