संधि विच्छेद
महर्षीणां भृगुः अहं गिराम् अस्मि एकम् अक्षरम् ।
यज्ञानां जपयज्ञः अस्मि स्थावराणां हिमालयः ॥
अनुवाद
महर्षियों में मैं भृगु हूँ, ध्वनियों में मैं ओम् हूँ| यज्ञों में मैं जाप यज्ञ हूँ, और स्थावारों(स्थिर पदार्थों) में मैं हिमालय हूँ|
व्याख्या
इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने अपने दूसरे विभूतियों का वर्णन किया| सभी महर्षियों में महर्षि भृगु भगवान श्री कृष्ण के ही अंश हैं| और सभी स्थावर पदार्थों में हिमालय में भगवान श्री कृष्ण का अंश है| लेकिन इस श्लोक में जो महत्वपूर्ण विभूति हैं वह हैं ओम् और जाप यज्ञ| ओम् के ध्वनि मात्र एक ध्वनि मात्र नहीं बल्कि भगवान श्री कृष्ण के अंश को प्रदर्शित करता है अतः इसके उच्चारण मात्र से भगवान की साधना का फल प्राप्त होता है|
वैसे तों श्रीमद भगवद गीता और दूसरे शास्त्रों में कई प्रकार के यज्ञों का वर्णन है और सभी प्रकार के यज्ञ कल्याणकारी हैं, लेकिन ईश्वर के नाम का जाप(भजन, कीर्तन आदि) सभी यज्ञों में उत्तम माना जाता है|