संधि विच्छेद
उच्चैःश्रवसमश्वानां विद्धि माम् अमृत उद्धवम् ।
एरावतं गजेन्द्राणां नराणां च नराधिपम् ॥
अनुवाद
यह जान लो कि अश्वो में मैं [समुद्र मंथन में ] अमृत के साथ उत्पन्न होने वाला उच्चश्रवा हूं, दिव्य गजो(हाथियों) में मै ऐरावत हूँ और मनुष्यों में मैं राजा हूँ|
व्याख्या
उच्चैश्रवा, दिव्य अश्व और ऐरावत, दिव्य हाथी समुद्र मंथन के समय प्रकट हुए | दोनों को देवताओं के राजा इन्द्र ने धारण किया| उच्चैश्रवा इन्द्र के रथ का घोडा है और ऐरावत इन्द्र की सवारी|
यह दोनों ही भगवान श्री विष्णु(श्री कृष्ण) के अंश है| यह ज्ञात हो कि समुद्र मंथन के समय, भगवान विष्णु स्वयं कछप अवतार में मेरु पर्वत को धारण कर रहे थे|
इस शलोक में भगवान श्री कृष्ण ने यह भी स्पस्ट किया कि मनुष्यों के बीच में राजा में भी उनकी विभूति का अंश होता है| यहाँ पर राजा का अर्थ एक सत्यानिष्ट राजा से लेना चाहिए|
शब्दार्थ
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गजेन्द्र= गज + इन्द्र = हाथियों का राजा
गज= हाथी
इन्द्र=राजा