अध्याय10 श्लोक28 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 10 : विभूति योग

अ 10 : श 28

आयुधानामहं वज्रं धेनूनामस्मि कामधुक्‌ ।
प्रजनश्चास्मि कन्दर्पः सर्पाणामस्मि वासुकिः ॥

संधि विच्छेद

आयुधानाम् अहं वज्रं धेनूनाम् अस्मि कामधुक्‌ ।
प्रजनः च अस्मि कन्दर्पः सर्पाणाम् अस्मि वासुकिः ॥

अनुवाद

शस्त्रों में मैं बज्र हूँ, गायों(या गौओं) में मैं कामधेनु हूँ |प्रजनन कारकों में मैं कन्दर्प(कामदेव) हूँ और सरीसृपों में मैं वासुकि हूँ|

व्याख्या

इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने अपने चार दूसरे विभूतियों का वर्णन किया| निर्जीव पदार्थों में और सभी शस्त्रों में वज्र भगवान श्री कृष्ण की विभूतियों में से एक है| यह वज्र देवराज इन्द्र का शस्त्र है|

पृथ्वी पर वज्र का एक रूप हम तब देखते हैं जब वर्षा ऋतु में बादलों से वज्रपात होता है| बादलों में स्थित आवेशीय कणों के विशेष स्थित में आने पर बहुत उच्च वोल्टेज (करीब 100000 volt से अधिक) का निर्माण होता है| बादलों में बढ़ वोल्टेज का अंतर बादलों और पृथ्वी के बीच के वायु को स्तर को तोड़ देता और और बादलों और पृथ्वी के बीच बिजली का संचार होता है जिसे हम वज्र कहते हैं| यह बहुत घातक होता है|

जिस वज्र की चर्चा इस श्लोक में हुई है वह पृथ्वी पर स्थित वज्रपात से कहीं शक्तिशाली होता है| वज्र का यह शस्त्र सिर्फ देवराज इन्द्र के पास है|

इस श्लोक में दूसरे विभूति के रूप में भगवान श्री कृष्ण ने देवलोक की गाय कामधेनु(सुरभि) का उल्लेख किया| कामधेनु भगवान श्री कृष्ण का ही एक रूप है| देवलोक की कामधेनु पृथ्वी पर स्थित सभी गौओं की जननी है | सनातन धर्म गाय के पवित्र होने का यह भी एक कारण है|

इस श्लोक के तीसरे विभूति के रूप में काम के देवता कन्दर्प (कामदेव) का वर्णन है| कामदेव सभी जीवो में काम भावना के देवता है| यह काम का गुण ही जीवों में प्रजनन के श्रोत है|

इस श्लोक एक चौथे रूप में सभी सरीसृपों के राजा वासुकी का वर्णन है| वासुकि के 99 भाई और हैं| जिनमे शेषनाग, तक्षक और कालिया मुख्य हैं| शेषनाग क्षीर सागर में भगवान विष्णु की शैया के रूप में विद्यमान हैं| वासुकी शेषनाग के भ्राता हैं | यह वासुकी ही थे जो समुद्र मंथन के समय रस्सी के रूप में प्रयुक्त हुए|