अध्याय10 श्लोक34 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 10 : विभूति योग

अ 10 : श 34

मृत्युः सर्वहरश्चाहमुद्भवश्च भविष्यताम्‌ ।
कीर्तिः श्रीर्वाक्च नारीणां स्मृतिर्मेधा धृतिः क्षमा ॥

संधि विच्छेद

मृत्युः सर्वहरः च अहम् उद्भवः च भविष्यताम्‌ ।
कीर्तिः श्रीवाकः च नारीणां स्मृतिः मेधा धृतिः क्षमा ॥

अनुवाद

मै सबका नाश(अन्त) करने वाला मृत्यु हूँ और भविष्य में आने वालों का उद्भव(उत्पति श्रोत) हूँ| नारियों में मैं कीर्ति, तेजोमय वाणी, स्मृति, मेधा(बुद्धिमता), धैर्य और क्षमा हूँ|

व्याख्या

इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने अपने दूसरी विभूतियों का वर्णन किया|

उन्होंने स्पस्ट किया कि जीवो की उत्पत्ति श्रोत और उसकी मृत्यु भी उनकी ही शक्तियों का रूप है|

लेकिन इस श्लोक में भगवान ने जो सबसे महत्वपूर्ण तथ्य का वर्णन किया वह यह कि इस पृथ्वी पर स्त्री(नारी) एक बेहतर प्राणी है| एक नारी स्वभाव से ही एक साथ कई गुणों से संपन्न होती है जो पुरुषों में दुर्लभ है| एक स्त्री कीर्ति, सुंदर वाणी, तीव्र स्मृति, बुद्धिमता, धैर्य और क्षमा जैसे गुणों से पूर्ण होती है| इस प्रकार एक नारी एक बेहतर मनुष्य होती है|

यह दुर्भाग्य की बात है कि हमारे समाज में नारियों को वह सम्मान नहीं मिलता जिसकी वह भागीदार हैं| पुरुषों ने सिर्फ शारीरिक शक्ति का प्रयोग कर नारियों को उनके अधिकार से वंचित किया है| एक धर्म प्रयाण पुरुष के लिए नारियों को सम्मान देना एक महत्वपूर्ण धार्मिक कर्तव्य है|