अध्याय10 श्लोक39 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 10 : विभूति योग

अ 10 : श 39

यच्चापि सर्वभूतानां बीजं तदहमर्जुन ।
न तदस्ति विना यत्स्यान्मया भूतं चराचरम्‌ ॥

संधि विच्छेद

यत् च अपि सर्वभूतानां बीजं तत् अहम अर्जुन ।
न तत् अस्ति विना यत् स्यात् मया भूतं चराचरम्‌ ॥

अनुवाद

जो सभी जीवों की उत्पत्ति का बीज है, हे अर्जुन, वह मैं हूँ| मेरे बिना [इस ब्रम्हांड में] ऐसा कोई चर या अचर पदार्थ नहीं जिसका मेरे बिना कोई अस्तित्व हो|

अथवा
जो सभी जीवों की उत्पत्ति का बीज है, हे अर्जुन, वह मैं हूँ| मेरे बिना [इस ब्रम्हांड में] किसी चर या अचर पदार्थ का कोई अस्तित्व नहीं|

व्याख्या

इस अध्याय के १९ श्लोकों में भगवान श्री कृष्ण ने अपने विभिन्न विभूतियों का वर्णन किया, इस श्लोक के बाद भगवान ने यह भी स्पस्ट किया कि जितनी विभूतियाँ वर्णित की गई हैं वह तों मात्र उदहारण है, वास्तव में उनकी(श्री कृष्ण की विभूतियों का कोई अन्त नहीं| यह पूरा ब्रम्हांड ही उनकी शक्ति और विभूतियों से मूर्तिमान है जैसा अध्याय ९ के इस श्लोक में वर्णित है

“यह सम्पूर्ण जगत मेरे अव्यक्त रूप (या अव्यक्त शक्ति) से विद्यमान है| “ (९.४)
इस श्लोक में भी भगवान इस तथ्य का वर्णन कर रहे हैं कि इस पुरे ब्रम्हांड में सभी जीवों की उत्पत्ति का बीज वह स्वयं है| और ऐसा कुछ भी चर या अहकार पधार्थ या जीव नहीं जो स्श्री कृष्ण की शक्ति के बिना अस्तित्व में हो|
इस पूरा विषय विस्तार मर जाकर ब्रम्हांड और जीवन में निर्माण से सम्बंधित होता है| यह पूरा ब्रम्हांड भगवान की दो मुख्य शक्तियों ब्रम्ह और माया से स्थित है| ब्रम्ह से आत्मा का निर्माण होता है और माया से सभी भौतिक पदार्थों का|
ब्रम्ह इस पुरे ब्रम्हांड में वैसे ही स्थित है जैसे पृथ्वी के समस्त भाग में वायु| इस ब्रम्ह के समुद्र में आत्मा वैसे है जैसे समुद्र में जल की सतह पर बुलबुला | ब्रम्ह ही वह मूल शक्ति है जिससे जीवन की उत्पत्ति हुई, जैसे अध्याय १४ में वर्णित है

हे भारत! मेरी मुख्य शक्ति ब्रम्ह है, इस ब्रम्ह के गर्भ में मैं अपनी आज्ञा का बीज प्रफुटित करता हूँ जिससे इस ब्रम्हांड में जीवन अस्तित्व में आता है|
--श्रीमद भगवद गीता १४.३