अध्याय10 श्लोक4,5 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 10 : विभूति योग

अ 10 : श 04-05

बुद्धिर्ज्ञानमसम्मोहः क्षमा सत्यं दमः शमः ।
सुखं दुःखं भवोऽभावो भयं चाभयमेव च ॥
अहिंसा समता तुष्टिस्तपो दानं यशोऽयशः ।
भवन्ति भावा भूतानां मत्त एव पृथग्विधाः ॥

संधि विच्छेद

बुद्धिः ज्ञानं असम्मोहः क्षमा सत्यं दमः शमः ।
सुखं दुःखं भवो अभावो भयं च अभयम् एव च ॥
अहिंसा समता तुष्टिः तपः दानं यशः अयशः ।
भवन्ति भावा भूतानां मत्त एव पृथक् विधाः ॥

अनुवाद

बुधि, ज्ञान, असम्मोह(सांसारिक मोह से मुक्ति की अवस्था), क्षमा, सत्य, आत्म संयम,मन का निग्रह(शम), सुख और दुःख,उत्पत्ति और प्रलय,भय और निर्भयता,अहिंसा, समता(सबको समान भाव से देखने का गुण),संतोष,तप,दान, यश और अपयश – जीवों में व्याप्त यह सभी सभी गुण मुझसे ही उत्पन्न हुए हैं(या मेरे द्वारा ही निर्मित हैं)|

व्याख्या

पिछले श्लोक में अपने अनादि स्वरूप के वर्णन करने के बाद इन दो श्लोकों में भगवान श्री कृष्ण यह स्पस्ट कर रहे हैं कि जीवों में व्याप्त सभी गुण उनसे(श्री कृष्ण से) ही उत्पन्न हुए हैं| इस प्रकार यह तथ्य अपने आप में पुष्ट हो जाता है कि इस ब्रम्हांड में सबकुछ और सभी गुण, सभी जीव, सभी भौतिक पदार्थ और ब्रम्हांड को संचालित करने वाले सभी प्राकृतिक नियम और गुण भगवान श्री कृष्ण की अपनी शक्ति से उत्पन्न हुए हैं|

ऊपर के श्लोक में उल्लेखित सभी गुण अपने आप से स्पस्ट हैं और उसमे किसी को ज्यादा भ्रम नहीं होना चाहिए| लेकिन कुछ लोगों के मन में एक भ्रम हो सकता है, कि कई गुण जैसे, भय, दुःख,अपयश गुणों की क्या उपयोगिता है| यह गुण तों जीवों में कष्ट ही पैदा करते हैं फिर इनकी क्या आवश्यकता है?

इसका प्रश्न का उत्तर जानने के पहले हमे यह समझना चाहिए कि यह ब्रम्हांड सिर्फ मनुष्यों के लिए नहीं बना और गुणों का सकारात्मक या नकारात्मक के निर्णय सिर्फ और सिर्फ मनुष्यों के परिपेक्ष्य ने नहीं किया जा सकता| कई गुण जैसे भय मनुष्यों के लिए नकारात्मक लगते हैं परन्तु यह गुण दूसरे जीवों के लिए जीवित रहने का साधन उपलब्ध कराते हैं| जैसे भय के कारण ही वन के जानवरों ए सतर्कता आती है | इसी प्रकार अध्याय ७ में भगवान श्री कृष्ण में यह वर्णित किया है कि अहंकार का गुण भी उनसे ही उत्पन्न है| यह अहंकार मनुष्यों के लिए नकारात्मक है लेकिन जानवरों के लिए उनकी स्थिति का साधन है| जानवरों में आत्म सम्मान, आत्म संयम, क्षमा, समता आदि जैसे गुण नहीं पाए जाते|
इस प्रकार दुःख, अपयश आदि जैसे गुणों का सम्बन्ध कर्म के सिद्धांत से है| चूँकि कर्म अच्छे और बुरे होते है तों उनकी तुलना में सुख और दुःख का होना आवश्यक है| नहीं तों कर्म को पूरा सिद्धांत ही गलत सिद्ध हो जायेगा|
कहने का तात्पर्य यह है कि अच्छे और बुरे दिखने वाले सभी गुण इस ब्रम्हांड के संचालन के लिए उपयोगी है और यह सब गुण भगवान श्री कृष्ण से ही उत्पन्न हैं|