अध्याय10 श्लोक8 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 10 : विभूति योग

अ 10 : श 08

अहं सर्वस्य प्रभवो मत्तः सर्वं प्रवर्तते ।
इति मत्वा भजन्ते मां बुधा भावसमन्विताः ॥

संधि विच्छेद

अहं सर्वस्य प्रभवः मत्तः सर्वं प्रवर्तते ।
इति मत्वा भजन्ते मां बुधा भावसमन्विताः ॥

अनुवाद

मैं ही सबका(सम्पूर्ण सृष्टि का) निर्माता हूँ| (सृष्टि में) सबकुछमुझसे ही(मेरे ही शक्ति से) संचालित हो रहे हैं| इस रहस्य को जानकार श्रद्धावान एवं ज्ञानी पुरुष भक्तिपूर्वक मेरी आराधना करते हैं|

व्याख्या

पिछले श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने यह बताया कि ईश्वर के गुणों का बखान, उनकी लीलाओं का वर्णन, अध्ययन, भजन, कीर्तन आदि से भक्ति
दृढ होती है|


इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण दृढ भक्ति के लिए ईश्वर में विश्वास की महत्ता का वर्णन कर रहे हैं|भगवान श्री कृष्ण इस सम्पूर्ण जगत के निर्माता है और उनकी ही इक्षा शक्ति से जगत का संचालन होता है| ऐसा विश्वास मन में रखने से भक्ति दृढ होती है| इस प्रकार ईश्वर में विश्वास भक्ति का एक मुख्य आधार है|