अनेकबाहूदरवक्त्रनेत्रंपश्यामि त्वां सर्वतोऽनन्तरूपम् । नान्तं न मध्यं न पुनस्तवादिंपश्यामि विश्वेश्वर विश्वरूप ॥
संधि विच्छेद
अनेक बाहूः उदर वक्त्र नेत्रं पश्यामि त्वां सर्वतः अनन्त रूपम् । न अन्तं न मध्यं न पुनः तव आदिं पश्यामि विश्वेश्वर विश्वरूप ॥
अनुवाद
हे विश्वेश्वर(जगत के ईश्वर)! आपके विश्वरूप में मैं अनेक भुजाओं, मुख, नेत्र और अनेक उदर के साथ चारो ओर आपके अनंत रूप को देख रहा हूँ| मैं आपके न अन्त, न मध्य और न ही आरम्भ को देखता|
व्याख्या
इस श्लोक में अर्जुन भगवान श्री कृष्ण के अनंत रूप का वर्णन आगे दे रहे हैं| भगवान श्री कृष्ण के रूप की कोई सीमा नहीं | इसका न कोई आरम्भ है और न कोई अंत| भगवान के रुप में अर्जुन ने अनंत शरीरों, मुख, नेत्र, भुजाओं को देखा|