मेरे मत से आप ही जानने योग्य परम अक्षर अर्थात परम ब्रम्ह(परमात्मा) हैं| आप ही सम्पूर्ण जगत के परम आश्रय हैं| आप अविनाशी, शाश्वत(सदा एक समान रहने वाला) और धर्म के रक्षक शाश्वत सनातन पुरुष हैं| अनंत भुजाओं, अनंत सामर्थ्य(शक्ति) और अनंत सूर्य और चन्द्रमा के समान नेत्रों वाले आपका न आरम्भ, न मध्य और न ही अन्त देखता हूँ| तीव्र उग्र अग्नि के समान प्रज्वलित आपके मुख के तेज से समपूर्ण जगत तापित हो तापित हो रहा है|