दंष्ट्राकरालानि च ते मुखानिदृष्टैव कालानलसन्निभानि ।
दिशो न जाने न लभे च शर्म प्रसीद देवेश जगन्निवास ॥
संधि विच्छेद
दंष्ट्रा करालानि च ते मुखानि दृष्टवा एव कालानल सन्निभानि ।
दिशो न जाने न लभे च शर्म प्रसीद देवेश जगत्-निवास ॥
अनुवाद
नुकीले दांतों वाले आपके विशाल मुख सभी दिशाओं में सृष्टि को नष्ट करने के
समान आग उगल रहे हैं| [इसे देखकर] मै दिग्भ्रमित और अशांत हो रहा हूँ| हे
जगन्निवास (जगत को धारण करने वाले), देवों के देव मुझपर करुणा करें|
व्याख्या
अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण का यह विकराल संहारक रूप देखा, सभी दिशाओं में व्याप्त नुकीले दांतों से युक्त विशाल मुख अग्नि प्रज्वल्लित कर रही है| ऐसा प्रतीत होता हिया पूरी सृष्टि अभी नष्ट हो जायेगी| सब कुछ श्री कृष्ण के रूप में समां जायेगा या भस्म हो जायेगा|