अध्याय11 श्लोक28 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 11 : विश्व रूप दर्शन

अ 11 : श 28

यथा नदीनां बहवोऽम्बुवेगाः समुद्रमेवाभिमुखा द्रवन्ति ।
तथा तवामी नरलोकवीराविशन्ति वक्त्राण्यभिविज्वलन्ति ॥

संधि विच्छेद

यथा नदीनां बहवः अम्बु वेगाः समुद्रम् एव अभिमुखा द्रवन्ति ।
तथा तव आमी नरलोकवीराः विशन्ति वक्त्राणि अभिविज्वलन्ति ॥

अनुवाद

जैसे नदिया तीव्र गति से दौडती हुई समुद्र में प्रवेश करती हैं, उसी प्रकार नरलोक(पृथ्वी) के सभी वीर आपके अग्नि से प्रज्वल्लित [और समुद्र के समान] आपके मुख में प्रवेश कर रहे हैं|

व्याख्या

अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण का जो संहारक रूप देखा उसका आगे वर्णन कर रहा है| इस ब्रम्हांड के लौकिक जीव और पदार्थ अपनी जीवन लीला समाप्त करके परम आत्मा भगवान श्री कृष्ण में ही विलीन होते हैं| यह प्रक्रिया तों हमेशा चलती रहती है| लेकिन अर्जुन को इस विनाश का दृश्य बड़े स्तर पर एक ही स्थान पर भगवान श्री कृष्ण के विश्वरूप में तीव्र गति से होता हुआ दिख रहा है|

अर्जुन ने देखा कि अपनी वीरता का अभिमान करने वाले बड़े बड़े वीरों के समूह भगवान के मुख में ऐसे प्रवेश कर रहे हैं जैसे नदिया समुद्र में| भगवान का मुख अअग्नि के समुद्र के समान प्रतीत हो रहा है जिसमे जाना वाला हर पदार्थ भस्म होकर श्री कृष्ण में विलीन हो रहा है|

यह दृश्य अर्जुन के लिए बहुत हृदय विदारक था|