अध्याय11 श्लोक32 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 11 : विश्व रूप दर्शन

अ 11 : श 32

कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धोलोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः ।
ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे येऽवस्थिताः प्रत्यनीकेषु योधाः ॥

संधि विच्छेद

कालः अस्मि लोक क्षय-कृत प्रवृद्धः लोकान् समाहृतुम् इह प्रवृत्तः ।
ऋते अपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे ये अवस्थिताः प्रत्यनीकेषु योधाः ॥

अनुवाद

श्री भगवान बोले:
सभी लोकों का नाश करने वाला प्रवृद्ध(बढा हुआ) काल हूँ मैं,और इन लोकों का संहार करने के लिए प्रकट हुआ हूँ| प्रतिपक्षियों में सभी योद्धा [अपने कर्मो के फलस्वरूप] [इस युद्धभूमि में] तुम्हारे युद्ध किये बिना भी अपने नियत अन्त को प्राप्त होंगे|
अथवा
सभी लोकों का नाश करने वाला काल हूँ मैं,और इन लोकों का संहार करने के लिए अपने विस्तार में प्रकट हुआ हूँ| प्रतिपक्षियों में सभी योद्धा [अपने कर्मो के फलस्वरूप] [इस युद्धभूमि में] अब अपने नियत अन्त को प्राप्त होंगे ही चाहे तुम युद्ध करो या न करो|

व्याख्या

यह श्लोक श्रीमद भगवद गीता की सबसे रहस्यमयी श्लोकों में से एक है और यह इतना बहु आयामी है कि इसके कई कई अर्थ निकलते हैं| एक तरफ यह श्लोक सनातन धर्म की सबसे मूल सिद्धांतों जैसे परमेश्वर की सार्वभौमता, कर्म, प्रारब्ध तथा प्रलय की विषयों को छूता है तों दूसरे तरफ यह विज्ञान के समय के मूल सिद्धांत की परिभाषा तय करता है|
जब अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण के विश्वरूप में विनाश का विध्वंशक रूप देखा तों भय से व्याकुल हो गया और उसने प्रश्न पूछा कि “आप कौन हैं?”. उसके जवाब में भगवान श्री कृष्ण ने जवाब दिया कि “मैं काल हूँ” और कुरुक्षेत्र में संहार के लिए प्रकट हुआ हूँ| इसके पहले भगवान श्री कृष्ण ने रूप में अर्जुन ने देखा कि सारी सृष्टि भगवान श्री कृष्ण से ही उत्पन्न हो रही है| फिर अर्जुन ने देखा किस सभी देवता, सभी जीव और सम्पूर्ण सृष्टि श्री कृष्ण में ही स्थित है और फिर अब अर्जुन ने देखा की श्री कृष्ण ही पूरी सृष्टि कस संहार कर रहे हैं| इस प्रकार श्री स्वयं ही निर्मंकारना, पालनकर्ता और संहारक और सर्वेसर्वा हैं| यह ईश्वर की सम्पूर्ण परिभाषा को तय तय करता है| श्री कृष्ण ने श्रीमद भगवद गीता में कई स्थानों पर यह तथ्य स्पस्ट रूप से प्रकट किया है
जैसे
अहं कृत्स्नस्य जगतः प्रभवः प्रलयस्तथा ॥
मैं सम्पूर्ण जगत का निर्माता, पालनकर्ता एवं विनाशकर्ता हूँ ॥
--Ch7:Sh6

श्री कृष्ण का दूसरा कथन इस श्लोक में है
“और इन लोकों का संहार करने के लिए प्रकट हुआ हूँ|”
श्री कृष्ण का कुरुक्षेत्र में होना कोई संयोग नहीं था, बल्कि श्री कृष्ण का अवतार अपने आप में कोई आकस्मिक घटना नहीं थे, अवतार के औचित्य का वर्णन करते हुए भगवान श्री कृष्ण ने अध्याय ३ में घोषणा की है कि दुष्टों का संहार और धर्म ई पुनर्स्थापना ईश्वर के अवतार का एक औचित्य होता है:
श्लोक इस प्रकार है

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्‌ ॥

भावार्थ : हे भारत! जब-जब (इस पृथ्वी पर)धर्म का नाश और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं अवतरित होता हूँ(अर्थात भौतिक शरीर धारण करके सबके सम्मुख प्रकट होता हूँ)

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्‌ ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥

भावार्थ : सज्जन (अच्छे) पुरुषों का उद्धार करने के लिए, पापियों का नाश करने के लिए और धर्म की संस्थापना(पुनः स्थापना) करने के लिए मैं युग युग में अवतार लेता हूँ॥
--(Ch4Sh7-8)
अतः कुरुक्षेत्र में हो रही या होने जा रही विनाश की पूरी लीला ईश्वर अवतार के औचित्य का ही एक हिस्सा था|

अगला तथ्य भगवान ने कहा

“प्रतिपक्षियों में सभी योद्धा तुम्हारे युद्ध किये बिना भी अपने नियत अन्त को प्राप्त होंगे|”
यह कथन कर्म और प्रारब्ध के सिद्धांत का प्रतिपादन करता है, प्रत्येक जीव अपने अपने कर्म के अनुसार अपने प्रारब्ध का निर्माण करता है और जीव का प्रारब्ध उसके आगे होने वाली घटनाओं का| कुरुक्षेत्र के युध का होना कई लोगों के स्वार्थ की परिणति थी| युद्ध हुआ क्योंकि लोग युद्ध होना की स्थिति पैदा की और उसमे अपनी मर्जी से शामिल हुए| सब के सब अपने अपने कर्म और प्रारब्ध के अनुसार अपने नियत फल तों प्राप्त होंगे ही होंगे| अर्जुन का होना न होना दूसरों के प्रारब्ध को नहीं बदल सकता | अतः श्री कृष्ण ने कहा की अब चाहे अर्जुन युद्ध करे या न करे, प्रतिपक्ष के योद्धाओं का अन्त अब निश्चित है|

यह तों कुछ अध्यात्मित तथ्य है| इस श्लोक में काल की परिभाषा भी तय होती है| इस श्लोक में दिए हुए काल की परिभाषा आयिंसटाईन के आकाश-समय के सापेक्षिता के सिद्धांत से मेल खाता है| काल वह है जो पुरे प्रकति को को बंधार उसे गति देता है| इस ब्रम्हांड में सबकुछ काल अर्थात समय और आकाश के निर्देशांक पर स्थित हैं| आकाश की एक रेखा में समय के आगे बढने से पूरा ब्रम्हांड आगे बढ़ जाता है या यूँ कहें काल पुरे ब्रम्हांड का जैसे भक्षण करता है| जो कुछ गुजर गया वह सदा के लिए खत्म हो गया| श्री कृष्ण ने विश्वरूप में भी अर्जुन ने वास्तव में यही देखा|