अध्याय11 श्लोक38 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 11 : विश्व रूप दर्शन

अ 11 : श 38

त्वमादिदेवः पुरुषः पुराणस्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्‌ ।
वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप ।।

संधि विच्छेद

त्वम् आदि देवः पुरुषः पुराणः त्वं अस्य विश्वस्य परं निधानम्‌ ।
वेत्ता असि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वम् अनन्त-रूप ।।

अनुवाद

आप आदि देव (प्रथम देवता) और ईश्वर(परमात्मा) है | आप सम्पूर्ण जगत के परम आश्रय हैं, सर्वज्ञ हैं और वह सब जो जानने योग्य है| आप सभी गुणों से परे(परं) है और सबका परम धाम हैं| आपके इस विश्व रूप से सम्पूर्ण सृष्टि आक्षादित हो गई है|

व्याख्या

पिछले श्लोक से आगे इस श्लोक में भी अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण के ईश्काीय गुणों का गान किया| भगवान श्री कृष्ण सभी जीवों का आश्रय हैं और अंतिम धाम हैं, इस तथ्य को भगवान श्री कृष्ण ने अध्याय ९ में स्वयं इस प्वकार वर्रित किया:

जैसे आकाश में सर्वत्र विचरण करता हुआ प्रचंड वायु आकाश में ही स्थित रहता है वैसे ही सभी प्राणी(या आत्माएं) अंततः मुझमे स्थित रहते हैं॥
-Ch 9: Sh 4

विभिन्न भौतिक शरीरों में विचरण करते हुए प्राणी हर समय परमात्मा श्री कृष्ण में ही स्थित होते हैं और भगवान श्री कृष्ण ही सभी जीवों की उत्पति और अंतिम धाम हैं|
भगवान श्री कृष्ण इस सृष्टि के अंतिम सत्य हैं| भौतिक जगत में परिलक्षित होंते वाले होने वाली घटनाएँ अल्पकाल के लिए ही सत्य होता प्रतीत होती हैं अवश्य होती हैं परन्तु नियत नहीं होती|

इस श्लोक में भगवन श्री कृष्ण ने लिए एक शब्द का प्रयोग किया गया है वह है "पुरुष"| इस शब्द के कई अर्थ होते हैं जिसका वर्णन अध्याय १५ में है| उनमे से सबसे महत्वपूर्ण है, ईश्वर या परमात्मा| पुरुष शब्द कर अर्थ ईश्वर के लिए वेदों में हुआ है| श्री ऋग वेद का १०.९० सूक्त, पुरुष सूक्त कहा जाता है| वेदों कके अलावा इस शब्द का प्रयोग भगवान विष्णु और उनके अवतारों के लिए होता है| श्रीमद भगवद गीता में इस शब्द का प्रयोग भगवान श्री कृष्ण के लिए अध्याय १३ और अध्याय १५ में हुआ है| और इस श्लोक में भी इस शब्द का प्रयोग है|