अदृष्टपूर्वं हृषितोऽस्मि दृष्ट्वा भयेन च प्रव्यथितं मनो मे।
तदेव मे दर्शय देवरूपंप्रसीद देवेश जगन्निवास ॥
किरीटिनं गदिनं चक्रहस्तमिच्छामि त्वां द्रष्टुमहं तथैव।
तेनैव रूपेण चतुर्भुजेनसहस्रबाहो भव विश्वमूर्ते॥
संधि विच्छेद
अदृष्टपूर्वं हृषितः अस्मि दृष्ट्वा भयेन च प्रव्यथितं मनः मे।
तत् एव मे दर्शय देवरूपं प्रसीद देवेश जगत निवास ॥
किरीटिनं गदिनं चक्र हस्तं इच्छामि त्वां द्रष्टुम् अहं तथा एव।
तेन एव रूपेण चतुर्भुजेन सहस्रबाहो भव विश्वमूर्ते॥
अनुवाद
पहले कभी नहीं देखे गए अभूतपूर्व [विश्व] रूप को देखकर मैन हर्षित हो रहा हूँ, परन्तु भय व्याकुल भी हो रहा है| इसलिए हे देवेश! हे जगन्निवास(सम्पूर्ण जगत के अंतिम धाम)! मुझपर प्रसन्न हों और अपना अति मनोरम चतुर्भुज रूप दिखाएँ |
पहले के समान मै आपको सिर पर मुकुट, हाथ में गदा और शंख धारण किये हुए रूप में देखना चाहता हूँ| हे विश्वरूप! हे सहस्रबाहो! आप उसी चतुर्भुज रूप में प्रकट हों|
व्याख्या
इन दो श्लोकों ने अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण से अपना मनोरम चुतुर्भुज रूप दिखाने का आग्रह किया| क्योंकि भगवान के विश्वरूप को देखकर अर्जुन का मन आश्चर्य और भय से व्याकुल एवं अधीर हो जाता है, उसका हृदय अस्थिर होने लगता है|
हालाकि भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन के आग्रह पर ही अपना वास्तविक रूप दिखाया| यह अर्जुन ही था जिसने इस अध्याय के आरम्भ में भगवान श्री कृष्ण का वास्तविक रूप देखने की इक्षा जताई थी| बल्कि श्री कृष्ण ने अर्जुन को दिव्य दृष्टि भी इसलिए प्रदान की ताकि वह श्री कृष्ण के वास्तविक रूप को देख सके|
लेकिन जो दृश्य अर्जुन ने देखा वह उसके लिए कल्पना के परे था| एक साथ और इतने कम समय में अर्जुन ने पुरे ब्रम्हांड को देख लिया| ब्रहांड में होने वाले निर्माण और विनाश को अपनी आँखों के सामने देखा| सबसे विचलित करने वाला दृश्य भगवान श्री कृष्ण का काल(मृत्यु) का रूप था| भगवान श्री क्रृष्ण ने काल रूपी मुख में अर्जुन ने हजारों हज़ार जीवों के एक साथ नष्ट होते देखा| पूरी श्रृष्टि एक एक करने भगवान श्री कृष्ण के काल रूप मुख में समाती हुई दिखी| इस दृश्य को देखकर अर्जुन का हृदय कांप गया| वह भय और विस्मय से अधीर हो उठता है और तब यहाँ पर अर्जुन ने श्री कृष्ण से आग्रह किया कि इस विश्वरूप को अदृश्य करें और इसके बदले अपना चतुर्भुज रूप दिखाए|
यह वही चतुर्भुज रूप है जिसे सभी भक्त भगवान विष्णु के वास्तविक रूप के अपने मन में धारण करते हैं| यह रूप अति मनोरम, सुंदर और मन को आह्लादित करने वाला है| सिर पर मुकुट, गले में माला और हाँथ में चक्र और गदा भगवान विष्णु का सबसे प्रचलित रूप है और मन को आनंदित करने वाला है| अर्जुन ने इसी रूप को देखने का आग्रह किया|