अध्याय11 श्लोक5,6 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 11 : विश्व रूप दर्शन

अ 11 : श 05-06

श्रीभगवानुवाच
पश्य मे पार्थ रूपाणि शतशोऽथ सहस्रशः ।
नानाविधानि दिव्यानि नानावर्णाकृतीनि च ॥
पश्यादित्यान्वसून्रुद्रानश्विनौ मरुतस्तथा ।
बहून्यदृष्टपूर्वाणि पश्याश्चर्याणि भारत ॥

संधि विच्छेद

पश्य मे पार्थ रूपाणि शतशः अथ सहस्रशः ।
नाना विधानि दिव्यानि नाना वर्णा कृतीनि च ॥
पश्य आदित्यान् वसुन रुद्रान् अश्विनौ मरुतः तथा ।
बहूनि अन्दृष्ट पूर्वाणि पश्य आश्चर्याणि भारत ॥

अनुवाद

श्री भगवान बोले
हे पार्थ! सैकड़ो-हजारों नाना प्रकार के रंगों, विधाओं (आकृतियों और आयामों) में फैले मेरे अद्भुत विशाल दिव्य रूप को धारण करो|(5) हे अर्जुन! मुझमे आदित्यों, वसुओं, रुद्रों, अश्विनी कुमारों, मारुतों को और पहले कभी नहीं देखे गए आश्चर्यजनक दृश्यों को देखो|(6)

व्याख्या

अर्जुन के निष्पाप आग्रह पर भगवान श्री कृष्ण अपना वास्तविक रूप अर्जुन को प्रदर्शित करने पर सहमत हो गए|

भगवान श्री कृष्ण ने अपने रूप का प्रारंभिक वर्णन प्रस्तुत किया| श्री कृष्ण के विश्वरूप में इस ब्रम्हांड ही हर चीज़ दृष्टिगोचर है, सभी देवता, जिसमे बारह आदित्य, आठ वसु, ग्यारह रूद्र, दो अश्विन कुमार, और 49 मरुत शामिल हैं सब एक साथ भगवान के रूप में सम्मिल्लित हैं|

ब्रम्हांड का हर चर और अचर प्राणी, ब्रम्हांड में होने वाले सभी प्रक्रियाएं तथा भूतकाल और भविष्य में होने वाली सभी घटनाएँ दिखेंगी|