अध्याय11 श्लोक14,15 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 11 : विश्व रूप दर्शन

अ 11 : श 14-15

ततः स विस्मयाविष्टो हृष्टरोमा धनञ्जयः ।
प्रणम्य शिरसा देवं कृताञ्जलिरभाषत ॥
अर्जुन उवाच
पश्यामि देवांस्तव देव देहे सर्वांस्तथा भूतविशेषसङ्घान्‌ ।
ब्रह्माणमीशं कमलासनस्थमृषींश्च सर्वानुरगांश्च दिव्यान्‌ ॥

संधि विच्छेद

ततः स विस्मय अविष्टः हृष्टरोमा धनञ्जयः ।
प्रणम्य शिरसा देवं कृताञ्जलिः अभाषत ॥
अर्जुन उवाच
पश्यामि देवान् तव देव देहे सर्वान् तथा भूत विशेषसङ्घान्‌ ।
ब्रह्माणम् इशं कमलासन् स्थम् ऋषिः च सर्वान् उरगान् च दिव्यान्‌ ॥

अनुवाद

[भगवान के शरीर में सम्पूर्ण ब्रम्हांड को देखकर] धनञ्जः(अर्जुन) आश्चर्यचकित हो गया, उसके शरीर के रोंगटे खड़े हो गए| तब वह (अर्जुन) अपने दोनों हाँथ जोड़कर श्रधा से परमात्मा(श्री कृष्ण) के सम्मुख नतमस्तक हुआ और बोला|

अर्जुन ने बोला:
हे देव! मैं आपके शरीर में सभी देवताओं, नाना प्रकार के जीवों, कमल के आसन पर विराजमान ब्रम्हा, महादेव(श्री शिव), सभी ऋषियों और दिव्य सर्पों को देखता हूँ|

व्याख्या

जब भगवान श्री कृष्ण ने अपना रूप दिखाना शुरू किया तों अर्जुन की आँखों के सामने जो दृश्य प्रकट हुआ वह अर्जुन के कल्पना के परे था| अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण के शरीर में एक ही स्थान पर ब्रम्हांड और उसके अंतर्गत स्थित हजारों आकाश गंगाओं और ब्रम्हांड में होने वाली सभी घटनाओ को देखा| फिर अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण ने शरीर में सभी देवताओं और दूसरे प्रकार के जीवों को देखा | कमल पर विराजमान ब्रम्हा और श्री शिव और शेषनाग आदि सभी सारीसृपों को देखा|

यह सब देखकर अर्जुन विस्मय से भर गया, उसके रोंगटे खड़े हो गए| वह श्रधा से भर गया| दोनों हाँथ जोड़कर तब अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण को प्रणाम किया और उसे जो कुछ दिखा उसका वर्णन करने लगा| इस श्लोक में अर्जुन के वही भाव प्रकट हो रहे हैं|

इस श्लोक में एक अंतर और है, श्लोक #९ से श्लोक #१४ तक संजय के संवाद प्रकट हो रहे थे| लेकिन श्लोक #१५ में अर्जुन के शब्द जो उन्होंने देखा उद्धृत हैं| श्लोक #१५ "अर्जुन उवाच" से शुरू होता है|