ये तु धर्म्यामृतमिदं यथोक्तं पर्युपासते। श्रद्धाना मत्परमा भक्तास्तेऽतीव मे प्रियाः॥
संधि विच्छेद
ये तु धर्म्या अमृतं इदं यथा उक्तं पर्युपासते। श्रद्धाना मत्परमा भक्तः ते अतीव मे प्रियाः॥
अनुवाद
जो [मनुष्य ] श्रधापुर्वक उपर्युक्त (उपर कहे गये ) धर्मयुक्त अमृत वाणी का पालन करते है और जो मुझे सर्वोच्च मानकर भक्ति मे संलग्न है वह [भक्त ] मुझे अत्यंतप्रिय है |
व्याख्या
यह श्लोक इस अध्याय का अंतिम श्लोक है। इस श्लोक मे भगवान श्री कृष्ण ने ऊपर के सभी श्लोकों मे वर्णित मनुष्य के सभी उत्तम गुणो का सारांश प्रस्तुत किया। जो मनुस्य इन उत्तम गुणो का पालन करता है वह एक श्रेष्ठ मनुष्य है और श्री कृष्ण को अति प्रिय है।