संधि विच्छेद
तत् क्षेत्रं यत् च यादृक च यत् विकारि यतः च यत् ।
सः च यः यत् प्रभावः च तत् समासेन मे श्रृणु॥
अनुवाद
क्षेत्र क्या है, इस क्षेत्र के क्या गुण हैं और इसके विकार (या परिवर्तन) क्या हैं? यह उत्पन्न कैसे होता है तथा इसके क्या प्रभाव हैं? इसका विवरण अब मुझसे सुनो |
व्याख्या
इस श्लोक मे भगवान श्री कृष्ण क्षेत्र अर्थात जीवित शरीर के प्रारम्भिक प्रस्तावना प्रस्तुत कर रहे है। आगे के कई श्लोकों मे जीवित शरीर के जिन विषयों की चर्चा होगी। क्षेत्र से सबंधित वे विषय हैं
1 क्षेत्र अर्थात जीवित शरीर क्या है?
किसी जीव का शरीर यद्यपि प्रकृति के उन्ही तत्वो से बना होता है जिससे मिट्टी, पत्थर रेट आदि बने होते हैं, लेकिन फिर भी एक जीवित शरीर एकदम भिन्न दिखता है। जीवित प्राणी का शरीर न सिर्फ अत्यंत जटिल होता है परंतु इसमे पाये जाने वाले सभी गुण आश्चर्यजनक होते हैं।
२ जीवित शरीर के गुण
एक जीवित शरीर मे कुछ ऐसे विशेष गुण होते हैं जो इसे निर्जीव पदार्थों से अलग करते हैं । बुद्धि, भावना, चेतना आदि कुछ ऐसे विलक्षण गुण हैं जो एक जीवित शरीर को प्रकृति की हर वस्तुओं से अलग कराते हैं।
३ जीवित शरीर के विकार अर्थात अवस्थाएँ
जीवित शरीर कभी एक समान नहीं रहता, प्रतिफल इसमे परिवर्तन होते रहते हैं, लेकिन इस जीवित शरीर की कुछ अवस्थाएँ होती है। जीवित होने से लेकर अजीतिव होने तक का एक पूरा चक्र होता है जिसे अवस्थाओं मे विभाजीत किया गया है।
4 जीवित शरीर की उत्पत्ति
जीवित शरीर मे पाये जाने वाले सभी तत्व और पदार्थ निर्जीव होते हैं लेकिन शरीर मे उनका गठन इस प्रकार से होता है कि वह एक जीवित शरीर का निर्माण कराते हैं। यह जीवित शरीर किस प्रकार एक निर्जीव प्रकृति से उत्पन्न होता है। इसकी चर्चा होगी।
5 जीवित शरीर के प्रभाव
जब तक एक शरीर जीवित रहता है तब तक वह निरंतर किसी न किसी कर्म मे लिप्त होता है और प्रत्येक कर्म के कुछ न कुछ प्रभाव होते हैं। कर्म अच्छा है तो प्रभाव अच्छे होते हैं और अगर कर्म बुरा है तो प्रभाव बुरे। इस प्रकृति या जीवित संसार की वर्तमान स्थिति जीवित प्राणियों द्वारा किए गए कर्मो पर निर्भर होता है। जैसे कि अगर किसी समाज मे दुख ज्यादा हैं तो यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि समाज मे बुरे कर्मो की अधिकता है। और जहां सुख है वहाँ निश्चित ही अच्छे कर्मों की अधिकता।
आगे आने वाले श्लोको ने जीवित शरीर के इन विषयों पर चर्चा होगी,भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से यही कह रहे हैं इस श्लोक मे।