अध्याय13 श्लोक5 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 13 : पुरुष और प्रकृति

अ 13 : श 05

ऋषिभिर्बहुधा गीतं छन्दोभिर्विविधैः पृथक्‌ ।
ब्रह्मसूत्रपदैश्चैव हेतुमद्भिर्विनिश्चितैः ॥

संधि विच्छेद

ऋषिभिः बहुधा गीतं छन्दोभिः विविधैः पृथक्‌ ।
ब्रह्मसूत्र पदैः च एव हेतुमद्भिः विनिश्चितैः ॥

अनुवाद

इस [प्रकृति और पुरुष आदि] के तत्व [कई] ऋषियों वेदो के छंदों में विभिन्न रूप से और तर्कों के द्वारा ब्रम्हसूत्र के पदों के द्वारा निर्णायक रूप से निश्चित किये गए हैं।

व्याख्या

इस श्लोक मे भगवान श्री कृष्ण ने यह स्पस्ट किया पुरुष और प्रकृति के रहस्य जो इस अध्याय मे बताएं गयें हैं उसका वर्णन दूसरे ग्रन्थों मे भिन्न भिन्न रूप से किया गया है और कई ऋषियों के द्वारा भी बताया गया है।
यह एकदम सत्य है, पुरुष और प्रकृति का यह विषय वेदों, उपनिषदों और पुराणों मे सांख्य सिधान्त के रूप मे वर्णित है। पुरुष और प्रकृति के कई विषयों को महर्षि कपिल के द्वारा रचित सांख्य सिधान्त मे वर्णित किया गया है। पुराणो मे श्रीमद भगवद मे सांख्य सिधान्त का वर्णन महर्षि कपिल द्वारा अपनी माता के साथ वार्तालाप के रूप मे हैं।
"पुरुष" शब्द के दो मुख्य इकाइयों ईश्वर और आत्मा का विस्तृत वर्णन ब्र्म्ह सूत्र मे है । सूत्र जिसे अँग्रेजी मे फार्मूला कहा जाता है का अर्थ ही होता है भिन्न भिन्न अवयवों का वह संगठन जिससे एक परिणाम निकलता है। ब्रम्हसूत्र मे सूत्रों मे स्थित तर्क के आधार पर परमात्मा और आत्मा को सिद्ध किया गया है।
वेदों मे भी कई स्थानो पर पुरुष और प्रकृति के तत्वो का वर्णन हैं। उदाहरण के तौर पर श्री ऋग वेद का 10.90 सूक्त मे ईश्वर का वर्णन है, इसमे ईश्वर को पुरुष शब्द से इंगित किया गया है। इसलिए इस दुक्त को पुरुष सूक्त भी कहते हैं।
इस श्लोक मे एक बात अति विचारणीय है। भगवान श्री कृष्ण ने इस श्लोक मे वेदों और ब्रम्ह्सुत्र का उल्लेख किया है, इससे यह सिद्ध होता है कि वेद और ब्रम्ह्सुत्र श्रीमद भगवद गीता के पहले लिखे गए । जब श्री कृष्ण कुरुक्षेत्र मे अर्जुन से यह वार्तालाप कर रहे थे उस समय वेद और ब्रम्ह्सुत्र उपस्थित थे और चलन मे थे।