मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः । आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत ॥
संधि विच्छेद
मात्रा स्पर्श तु कौन्तेय शीतोष्ण सुख दुःख दः । आगम अपायिनः अनित्यः तान् तितिक्षस्व भारत ॥
अनुवाद
हे कुन्तीपुत्र ! इन्द्रियों का प्रकृति से विभिन्न मात्राओं में संपर्क सर्दी गर्मी, सुख और दुःख का अनुभव देते हैं| यह आते-जाते रहते हैं और अनित्य होते हैं| इनको तुम सहन करो(या सहन करना सीखो)।