अध्याय2 श्लोक18 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 2 : सांख्य योग

अ 02 : श 18

अन्तवन्त इमे देहा नित्यस्योक्ताः शरीरिणः ।
अनाशिनोऽप्रमेयस्य तस्माद्युध्यस्व भारत ॥

संधि विच्छेद

अन्तवन्त इमे देहा नित्यस्य उक्ताः शरीरिणः ।
अनाशिनः अप्रमेयस्य तस्मात् युध्यस्व भारत ॥


अनुवाद

इस नित्य(अमर) आत्मा(शरीरी) के सिर्फ शरीर का अंत होता है| यह [आत्मा] तो अविनाशी और अप्रमेय (जिसे नापा न जा सके) है, इसलिए हे भारत(अर्जुन) ! तुम युद्ध करो।

व्याख्या

शरीर और आत्मा की वास्तविकता को बताते हुए भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को यह स्पस्ट किया कि आत्मा अविनाशी होता है है और इसका विनाश किया ही नहीं जा सकता| सिर्फ शरीर का ही विनाश होता है आत्मा का नहीं| इसलिए अर्जुन को इस शारीरिक परिवर्तन के बारे में सोचकर दुखी नहीं होना चाहिए उसे युद्ध करना चाहिए|