वेदाविनाशिनं नित्यं य एनमजमव्ययम् । कथं स पुरुषः पार्थ कं घातयति हन्ति कम् ॥
संधि विच्छेद
वेद अविनाशिनं नित्यं य एनम् अजम् अव्ययम् । कथं स पुरुषः पार्थ कं घातयति हन्ति कम् ॥
अनुवाद
हे पार्थ ! जो मनुष्य यह जानता है कि आत्मा अविनाशी, नित्य, अजन्मा और अव्यय है(जो व्यय या खर्च न हो) वह कैसे खुद को किसी को मारने वाला या किसी के मरने का कारण मान सकता है?