अध्याय2 श्लोक25 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 2 : सांख्य योग

अ 02 : श 25

अव्यक्तोऽयमचिन्त्योऽयमविकार्योऽयमुच्यते ।
तस्मादेवं विदित्वैनं नानुशोचितुमर्हसि॥॥

संधि विच्छेद

अव्यक्तः अयम् अचिन्त्यः अयम् अविकार्यः अयम् उच्यते ।
तस्मात् एवं विदित्व एनं न अनुशोचितुम् अर्हसि॥॥

अनुवाद

इस आत्मा को अव्यक्त(अदृश्य), अचिन्त्य और विकार रहित कहा गया है| इस सत्य को जानने के बाद [भौतिक शरीर के बारे में] तुम्हें इस प्रकार शोक नहीं करना चाहिए |

व्याख्या

आत्मा की अनन्तता को बताने के बाद भगवान श्री कृष्ण ने आत्मा के और दूसरे गुण बताये | चूँकि आत्मा अनंत है, अमर और और सभी परिवर्तनों से मुक्त है | सिर्फ भौतिक शरीर ही क्षतिग्रस्त होता है आत्मा नहीं| इसलिए किसी मनुष्य जो जन्म और मृत्यु के बारे में सोचकर दुखी नहीं होना चाहिए|