अध्याय2 श्लोक29 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 2 : सांख्य योग

अ 02 : श 29

आश्चर्यवत्पश्यति कश्चिदेन-माश्चर्यवद्वदति तथैव चान्यः ।
आश्चर्यवच्चैनमन्यः श्रृणोति श्रुत्वाप्येनं वेद न चैव कश्चित्‌ ॥

संधि विच्छेद

आश्चर्यवत् पश्यति कश्चित् एनं आश्चर्यवत् वदति तथैव च अन्यः ।
आश्चर्यवत् च एनं अन्यः श्रृणोति श्रुत्वा अपि एनं वेद न च एव कश्चित्‌ ॥

अनुवाद

कोई इस [आत्मा] को आश्चर्य की भांति देखता है, वहीँ कोई दूसरा इसे आश्चर्य से व्यक्त(वर्णन) करता है।और कोई अन्य इसे आश्चर्य से सुनता है लेकिन बार बार सुनकर भी इस[आत्मा] को समझ नहीं पाता।

व्याख्या

जीवन से सम्बंधित रहस्यों को दोनों अध्यात्मिक और सांसारिक दृष्टिकोण से वर्णन करने के बाद भगवान श्री कृष्ण ने एक व्यावहारिक सत्य भी अर्जुन को बताया| कोई मनुष्य अगर आत्मा को नहीं समझ पाए तो इसलिए नहीं कि मनुष्य में कोई त्रुटि ही हो, बल्कि इसलिए कि आत्मा अत्यंत गुढ़ है। भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि आत्मा इतना गुढ़ है कि इसे समझने में बहुत मनुष्य असमर्थ होते हैं । कई लोग जो आत्मा के बारे में जानते हैं वह आश्चर्य की भांति इसे ग्रहण करते हैं। दूसरे अन्य जो इसका वर्णन करते हैं वह भी इसे आश्चर्य की भांति ही वर्णन करते हैं| बार बार पढने सुनने और जानने के बाद में अधिकतर मनुष्य इस अंतर्सात नहीं कर पाते।

लेकिन ऐसा भी नहीं है कि आत्मा को जाना न जा सके। आगे के अध्याय में भगवान ने फिर इस आत्मा को साधने के उपाय बताये हैं, जो योग में दृढनिश्चित होते हैं, जो भगवान श्री कृष्ण ने अटूट श्रधा रखते हैं वह इस आत्मा को पूर्ण रूप से जान पाते हैं।