अध्याय2 श्लोक32 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 2 : सांख्य योग

अ 02 : श 32

यदृच्छया चोपपन्नां स्वर्गद्वारमपावृतम्‌ ।
सुखिनः क्षत्रियाः पार्थ लभन्ते युद्धमीदृशम्‌ ॥

संधि विच्छेद

यदृच्छया च उपपन्नां स्वर्ग द्वारम् अपावृतम्‌ ।
सुखिनः क्षत्रियाः पार्थ लभन्ते युद्धम् इदृशम्‌ ॥

अनुवाद

हे पार्थ ! सौभाग्यशाली हैं वे क्षत्रिय जिन्हें इस प्रकार [धर्म और मानवता की रक्षा के लिए] युद्ध करने का अवसर मिलता है | ऐसा युद्ध तो उनके लिए स्वर्ग के द्वार खोल देता है|

व्याख्या

भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को क्षत्रिय धर्म याद दिलाने के बाद क्षत्रिय के लिए ऐसे युद्ध की उपयोगिता बताई| भगवन ने कहा कि क्षत्रिय के लिए धर्म और मानवता की रक्षा उसका सबसे परम कर्तव्य है | ऐसे युद्ध से धर्म और समाज की रक्षा तो होती ही है लेकिन उस क्षत्रिय के लिए स्वर्ग के द्वार खोलती है|