अध्याय2 श्लोक33 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 2 : सांख्य योग

अ 02 : श 33

अथ चेत्त्वमिमं धर्म्यं संग्रामं न करिष्यसि ।
ततः स्वधर्मं कीर्तिं च हित्वा पापमवाप्स्यसि ॥

संधि विच्छेद

अथ चेत् इमं धर्म्यं संग्रामं न करिष्यसि ।
ततः स्वधर्मं कीर्तिं च हित्वा पापम् वाप्स्यसि ॥

अनुवाद

किन्तु यदि तुम यह धर्म युद्ध नहीं करोगे, तो अपने कर्तव्य को त्यागने के कारण अपनी कीर्ति को खोकर पाप के भागी बनोगे |

व्याख्या

इस श्लोक में भगवान ने अर्जुन को अपना कर्तव्य न निभाने के दुष्परिणाम का वर्णन किया है|
भगवान ने यह स्पस्ट किया कि कोई भी मनुष्य अगर अपना कर्तव्य निश्तापुर्वक नहीं निभाता तो वह निश्चय ही पाप का भागी होता है|

अर्जुन एक योद्धा है और धर्म और मानवता की रक्षा के लिए युद्ध करना उसका वास्तविक कर्तव्य है | अगर ऐसे समय में जब उसका युद्ध करना समाज की रक्षा के लिए अति आवश्यक है और वह युद्ध से भाग जाता है तो वह पाप का भागी होगा|

उसका युद्ध त्यागने का दूसरा दुष्परिणाम यह होगा कि उसकी अपनी सारी मर्यादा और सम्मान नष्ट हो जायेगा, क्योंकि उसका सारा सम्मान एक उच्चा योद्धा होने के कारण ही है| अगर वह युद्ध छोडकर भागता है तो उसे कायर समझा जायेगा |

यह श्लोक हालाकि अर्जुन के क्षत्रिय धर्म के परिपेक्ष्य में है लेकिन यही नियम सभी दूसरे कर्तव्यों के लिए भी लागु होता है|