अध्याय2 श्लोक36 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 2 : सांख्य योग

अ 02 : श 36

अवाच्यवादांश्च बहून्‌ वदिष्यन्ति तवाहिताः ।
निन्दन्तस्तव सामर्थ्यं ततो दुःखतरं नु किम्‌ ॥

संधि विच्छेद

अवाच्य वादान च बहून्‌ वदिष्यन्ति तव अहिताः ।
निन्दन्तः तव सामर्थ्यं ततः दुःखतरं नु किम्‌ ॥

अनुवाद

तुम्हारे शत्रु तुम्हारे बारे में तरह तरह न कहने योग्य ( अपमान युक्त) शब्द कहेंगे और तुम्हारे सामर्थ्य पर प्रश्न उठाएंगे | [एक वीर के लिए] इससे ज्यादा दुखद और क्या होगा?

व्याख्या

अर्जुन को भगवान श्री कृष्ण ने याद दिलाया कि एक क्षत्रिय होने के नाते धर्म युद्ध उसका स्वाभाविक धर्म है और अपने कर्तव्य का त्याग पाप है, भगवान ने अर्जुन को कर्तव्य त्यागने के कारण होने वाले व्यक्तिगत और सामाजिक हानि का वर्णन किया|

भगवान ने अर्जुन को बताया कि उसकी पूरी प्रतिष्ठा एक योधा होने के कारण है| लोग उसे धर्म और समाज का रक्षक समझते हैं| अगर वह यह धर्म युद्ध नहीं करता है तो लोग यही समझेंगे कि जान के डर से वह युद्ध भूमि से भाग गया| लोग उसकी खिल्ली उड़ायेंगे और इतिहास में उसे एक कायर के रूप में जाना जायेगा|

एक प्रतिष्ठित मनुष्य के लिए अपमान तो मृत्यु से भी बदतर है