अध्याय2 श्लोक37 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 2 : सांख्य योग

अ 02 : श 37

हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्‌ ।
तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चयः ॥

संधि विच्छेद

हतः वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्‌ ।
तस्मात उत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चयः ॥

अनुवाद

यदि तुम युद्ध में मारे गए तो स्वर्ग प्राप्त करोगे और यदि विजयी हुए तो इस धरा(पृथ्वी) का राज्य भोगोगे | इसलिए उठो हे कुन्तीपुत्र! दृढ निश्चय होकर युद्ध करो|

व्याख्या

अपना कर्तव्य न निभाने की स्थिति में होने वाले व्यक्तिगत और सामाजिक हानि को समझाने के बाद भगवन श्री कृष्ण ने अर्जुन को कर्तव्य का पालन करने से होने वाले लाभ का वर्णन किया |निष्ठापूर्वक कर्तव्य पालन से मनुष्य इस लोक और परलोक में सुखी होता है|

अर्जुन के क्षत्रिय धर्म के बारे में भगवान ने स्पस्ट किया कि अगर एक योद्धा अपने समाज और देश की रक्षा के लिए युद्ध में मारा जाता है तो वह निश्चित रूप से स्वर्ग प्राप्त करता है | और अगर विजय होता है तो जीवन का सुख भोगता है, समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त करता है लोगों के लिए प्रेरणा बनकर इतिहास के पन्नों में स्थान पाता है|