य न ईहा अभिक्रम नाशः अस्ति प्रत्यवातः न विद्यते । स्वल्पम अपि अस्य धर्मस्य त्रायते महतः भयात् ॥
अनुवाद
इस मार्ग में कभी भी अभिकर्म (मनुष्य द्वार किये गए प्रयास) की हानि नहीं है| इसमें (योग में) थोडा भी प्रयास मनुष्य को जन्म-मृत्यु के भय से रक्षा करता है|