अ 02 : श 44
भोगैश्वर्यप्रसक्तानां तयापहृतचेतसाम् ।
व्यवसायात्मिका बुद्धिः समाधौ न विधीयते ॥
संधि विच्छेद
भोगः ऐश्वर्य प्रसक्तानां तय अपहृत-चेतसाम् ।
व्यवसायात्मिका बुद्धिः समाधौ न विधीयते ॥
जो भोग और ऐश्वैर्य में आसक्त(लिप्त) हैं और जिनका मन इन भौतिक वासनाओं द्वारा हर लिया गया है उनकी बुद्धि परमात्मा की साधना में स्थिर नहीं हो पाती |