अध्याय2 श्लोक44 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 2 : सांख्य योग

अ 02 : श 44

भोगैश्वर्यप्रसक्तानां तयापहृतचेतसाम्‌ ।
व्यवसायात्मिका बुद्धिः समाधौ न विधीयते ॥

संधि विच्छेद

भोगः ऐश्वर्य प्रसक्तानां तय अपहृत-चेतसाम्‌ ।
व्यवसायात्मिका बुद्धिः समाधौ न विधीयते ॥

अनुवाद

जो भोग और ऐश्वैर्य में आसक्त(लिप्त) हैं और जिनका मन इन भौतिक वासनाओं द्वारा हर लिया गया है उनकी बुद्धि परमात्मा की साधना में स्थिर नहीं हो पाती |

व्याख्या