अनुवाद
सब ओर से परिपूर्ण जलाशय के प्राप्त हो जाने पर छोटे जलाशय में मनुष्य का जितना प्रयोजन रहता है, ब्रह्म को तत्व से जानने वाले ब्राह्मण का समस्त वेदों में उतना ही प्रयोजन रह जाता है॥
व्याख्या
इस श्लोक में भी भगवान श्री कृष्ण ने वेदों के सापेक्षिक उपयोग का वर्णन किया है| वेद मनुष्यों को भौतिक जगत का सम्पूर्ण ज्ञान देते हैं और मोक्ष का साधन उपलब्ध कराते हैं | लेकिन जब मनुष्य अपनी आत्मा को जागृत करके परमात्मा में एकीकर हो जाता है तो उसे फिर वेदों के आधार की आवश्यकता नहीं रह जाती| उदाहरण देते हुए भगवान ने स्पस्ट किया है कि जैसे बड़े जलाशय के द्वार छोटे जलाशय द्वारा पूरी की जाने वाली आवश्यकता स्वयं ही पूरी हो जाती है उसी प्रकार ईश्वर के योग में स्थित मनुष्यों की सभी आवश्यकताएं जो वेदों द्वारा पूरी की जा सकती थी वह स्वयं पूरी हो जाती है|