अध्याय2 श्लोक56 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 2 : सांख्य योग

अ 02 : श 56

दुःखेष्वनुद्विग्नमनाः सुखेषु विगतस्पृहः ।
वीतरागभयक्रोधः स्थितधीर्मुनिरुच्यते ॥

संधि विच्छेद

दुःखेषु अनुदिग्नः-मनाः सुखेषु विगतस्पृहः ।
वीत राग भय क्रोधः स्थितधीः मुनिः उच्यते ॥

अनुवाद

जो दुखों से उद्वेगित (व्याकुल) नहीं होता और जो सुख में अति उत्साहित नहीं होता और जो राग(भौतिक मोह), भय और क्रोध से मुक्त है वह स्थितप्रज्ञ [मनुष्य] मुनि हैं|

व्याख्या

इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने स्थितप्रज्ञ मनुष्य के दूसरे गुण बताये |भगवान ने कहा कि जब कोई मनुष्य ऐसा हो जो न दुःख में व्याकुल होता हो और जो न सुख में अति उत्साहित उसे स्थित प्रज्ञ जानना चाहिए | ऐसा मनुष्य जब भौतिक राग, भय और क्रोध से मुक्त हो जाता है तब वह मुनि(ऋषि) हो जाता है|