अध्याय2 श्लोक60,61 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 2 : सांख्य योग

अ 02 : श 60-61

यततो ह्यपि कौन्तेय पुरुषस्य विपश्चितः ।
इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मनः ॥
तानि सर्वाणि संयम्य युक्त आसीत मत्परः ।
वशे हि यस्येन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥

संधि विच्छेद

यततः हि अपि कौन्तेय पुरुषस्य विपश्चितः ।
इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मनः ॥
तानि सर्वाणि संयम्य युक्त आसीत मत्परः ।
वशे हि यस्य इन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥

अनुवाद

हे अर्जुन ! इन्द्रियां इतनी प्रबल होती हैं कि वह आत्म संयम में प्रयासरत मनुष्य के मन को भी बलात्‌ हर लेती हैं |
इसलिए [आत्म संयम का प्रयास कर रहे मनुष्य को] को चाहिए कि मुझमे अपने मन को स्थित करके अपने इन्द्रियों पर संयम स्थापित करे, क्योंकि जिसकी इन्द्रियां वश में हैं वही [सच्चा] स्थित प्रज्ञ है|

व्याख्या

इस श्लोक से आगे भगवान श्री कृष्ण बुद्धि योग के द्वारा आत्म संयम का मार्ग बताते हैं| पहले श्लोक#६० में भगवान ने इन्दिर्यों की प्रबल शक्ति का वर्णन किया| इन्द्रियों का प्रभाव इतना प्रबल होता है कि यह साधना मंं स्थिर मनुष्य का भी मन भटका सकता है| इसलिए भगवान ने कहा कि वैसे साधक को पहले अपने मन को मुझमे स्थापित करना चाहिए और फिर इन्दिर्यों को नियंत्रित करने का प्रयास करना चाहिए| इस प्रकार से वह पूर्ण रूप से इन्द्रिओं पर नियंत्रण स्थापित कर पायेगा | जिसका इन्द्रिओं पर नियंत्र हो जाता है वह सुलभता से स्थितप्रज्ञ हो जाता है|