प्रसादे सर्व दुःखानां हानिः अस्य उपजायते । प्रसन्नचेतसः हि आशु बुद्धिः पर्यवतिष्ठते ॥
अनुवाद
अपनी अन्तःकरण में स्थित मनुष्य के सभी [तीन प्रकार के सांसारिक] दुखो का अंत हो जाता है । ऐसे [अध्यात्मिक] आनंद से युक्त उस [मनुष्य] की बुद्धि शीघ्र ही [परमात्मा में] स्थिर हो जाती है।