अध्याय2 श्लोक69 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 2 : सांख्य योग

अ 02 : श 69

या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी ।
यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः ॥

संधि विच्छेद

या निशा सर्व भूतानां तस्यां जागर्ति संयमी ।
यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः ॥

अनुवाद

जो एक सांसारिक जीवों के लिए रात्रि है, वह एक संयमी योगी के लिए जागृति का समय है| और जो एक सांसारिक जीवों के लिए दिन है वह मुनि के लिए रात्रि के समान है|

व्याख्या

ऊपर के श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने एक और अदभुत रहस्य का वर्णन किया है| ऊपर के श्लोक को पहली नज़र में पढकर अर्थ लगाना थोडा मुश्किल है| कुछ लोगों ने जिन्होंने कबीर की उलटी वाणी पढ़ी होगी जैसे “बरसे कम्बल भीगे पानी” उन्हें इस तरह के वाक्य मिले होंगे| यह वास्तव में सांसारिक और अध्यात्मिक जगत की सत्य का अंतर हैं|

भगवान ने ऊपर के श्लोक में सांसारिक और मुनि के व्यवहार में अंतर स्पस्ट किया है| एक सांसारिक व्यक्ति के लिए दिन या जगाने का समय वह है जिसमे वह सांसारिक इक्षाओ की पूर्ति के लिए सांसारिक बंधनों में व्यस्त होता है और उसके विपरीत रात्रि वह है जब वह सांसारिक कार्यों से मुक्त होता है|

लेकिन मुनि के लिए दिन और रात्रि की परिभाषा अलग है, एक मुनि जब आत्म ज्ञान से पूर्ण होता है, ईश्वर या परमात्मा में लीन होता है तो वह उसके लिए दिन है और जब वह परमात्मा से अलग होकर सांसारिक कार्यों में व्यस्त होता है तो वह उसके लिए रात्रि के समान है|