अ 02 : श 08
न हि प्रपश्यामि ममापनुद्या-द्यच्छोकमुच्छोषणमिन्द्रियाणाम् ।
अवाप्य भूमावसपत्रमृद्धं-राज्यं सुराणामपि चाधिपत्यम् ॥
संधि विच्छेद
न हि प्रपश्यामि मम अपनुद्यात् यत् शोकं उच्छोषणम् इन्द्रियाणाम् ।
अवाप्य भूमौ असपत्रम् ऋद्दं राज्यं सुराणाम् अपि च आधिपत्यम् ॥
मेरी मानसिक दशा ऐसी है की अगर पूरी पृथ्वी का निष्कंटक राज्य और स्वर्ग का स्वामित्व मिल जाए तब भी मेरे मन का यह शोक कम नहीं होगा ।