एवं प्रवर्तितं चक्रं नानुवर्तयतीह यः । अघायुरिन्द्रियारामो मोघं पार्थ स जीवति ॥
संधि विच्छेद
एवं प्रवर्तितं चक्रं अनुवर्तयति इह; यः । अघायुः इन्द्रिय-अरामः मोघं पार्थ स जीवति ॥
अनुवाद
हे पार्थ! जो [मनुष्य] वेदों द्वारा प्रस्तावित यग्य के इस अनुष्ठान का अनुसरण नहीं करते, वह इन्द्रियों द्वारा भोगों में रमण करते हुए पाप को प्राप्त होते हैं और इस जीवन को व्यर्थ करते है॥