न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किंचन ।
नानवाप्तमवाप्तव्यं वर्त एव च कर्मणि ॥
यदि ह्यहं न वर्तेयं जातु कर्मण्यतन्द्रितः ।
मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः ॥
यदि उत्सीदेयुरिमे लोका न कुर्यां कर्म चेदहम् ।
संकरस्य च कर्ता स्यामुपहन्यामिमाः प्रजाः ॥
संधि विच्छेद
न मे पार्थ अस्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किंचन ।
न अनवाप्तम् अवाप्तव्यं वर्ते एव च कर्मणि ॥
यदि हि अहं न वर्तेयं जातु कर्मणि अतन्द्रितः ।
मम वर्त्मा अनुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः ॥
उत्सीदेयुः इमे लोकाः न कुर्यां कर्म चेत् अहम् ।
संकरस्य च कर्ता स्याम उपहन्यम् इमाः प्रजाः ॥
अनुवाद
हे अर्जुन! इन तीनो लोकों में मेरे करने के लिए कुछ भी नही है, लेकिन फिर भी(मनुष्यों का मार्गदर्शन करने के लिए, उनके सामने श्रेष्ठ उदहारण प्रस्तुत करने के लिए) मैं कर्म करता हूँ| क्योंकि हे पार्थ! यदि कदाचित् मैं सावधान होकर कर्म न करूँ तो सभी मनुष्य (मेरा अनुसरण करते हुए) वैसा ही करना प्रारंभ कर देंगे| इसलिए यदि मैं कर्म न करूँ तो सभी मनुष्य मुझे मानक मानकर कर्मों का त्याग कर देंगे | सत्य और झूठ का भेद समाप्त हो जायेगा,भ्रम बढ़ जायेगा और इस प्रकार अंततः समाज का नाश हो जायेगा |
व्याख्या
इसके पिछले श्लोक में भगवान ने अर्जुन को यह याद दिलाया कि समाज अपने अग्रणी, अपने नेता या अपने नायकों का अनुसरण करता है| श्रेष्ठ मनुष्य जो जो करते हैं समाज के दूसरे लोग भी वैसा ही आचरण करते हैं|
इसी तथ्य को आगे वर्णित करते हुए भगवान ने स्वयं अपना उदहारण दिया|
भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि उनके सामने इस पूरी श्रृष्टि में करने के लिए कुछ नहीं है| पूरी श्रृष्टि उनके अधीन है और उनकी इक्षा से वे(श्री कृष्ण) सबकुछ प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन इसके बावजूद भी वह इस संसार में मनुष्यों के बीच आकर भांति कर्म करते हैं ताकि समाज में पवित्र कर्मो उदहारण प्रस्तुत हो और अच्छे और बुरे का मापदंड स्थापित हो सके | अगर वह सिर्फ यह सोचकर कर्म न करें कि मैं तो ईश्वर हूँ तो तो लोग उसी का अनुसरण करते हुए कम करना बंद कर देंगे| समाज का सारा कार्य कलाप अव्यवस्थित हो जायेगा |
इसलिए समाज के अग्रणी लोगों को अपने कर्तव्यों का भली भांति पालन करना चाहिए | कर्म करने का कोई व्यक्तिगत कारण अगर न भी हो तो समाज की रक्षा, समाज के सामने ऊँचे माप दण्ड स्थापित करने के लिए कर्म करना चाहिए|