संधि विच्छेद
न बुद्धि-भेदं जनयेत् अज्ञानां कर्म सङि्गनाम् ।
जोषयेत् सर्व-कर्माणि विद्वान युक्तः समाचरन् ॥
अनुवाद
ज्ञानियों को चाहिए कि उनलोगों को जो [निष्काम कर्म का अर्थ नहीं समझ पाते और] फल की इक्षा से कर्म करते हैं उन्हें [कर्मफल से सन्यास का वक्तव्य देकर] भ्रमित न करें | बल्कि स्वयं कर्तव्य करके [न कि बातों से] उनका मार्ग दर्शन करे|
व्याख्या
इस श्लोक में भगवान कर्तव्य पालन के और व्यावहारिक पहलू का वर्णन कर रहे हैं| भगवान ने कहा कि ज्ञानियों या समाज के अग्रणी लोगों को अपने कर्म से समाज के सामने उदहारण प्रस्तुत करना चाहिए न कि भाषण देकर|
भगवान ने यह स्पस्ट किया कि समाज में कई साधारण मनुष्य ऐसे होते हैं जो कर्म के निष्काम या सकाम जैसे गुढ़ रहस्यों को समझ नहीं आते | वैसे लोग अपनी सामाजिक या भौतिक अभिलाषाओं की पूर्ति के लिए कठिन परिश्रम करते हैं| अध्यात्म के लिए या मोख्स प्राप्ति के लिए यह सर्वोत्तम नहीं है लेकिन कुछ न करने से बेहतर है| ऐसे में कोई जाकर उन्हें यह भाषण देने लगे कि सामाजिक सफलता के लिए कर्म करना गलत है तो यह सही नहीं है| इस तरह की सलाह जो सिर्फ बातों पर निर्भर है साधारण लोगों को भ्रमित कर सकता है|
बल्कि ज्ञानियों को चाहिए कि अपने कर्म से लोगों के सामने उदहारण प्रस्तुत करें जिसे देखकर साधारण मनुष्य भी शिक्षा प्राप्त कर सकें और उसका अनुसरण कर सकें|