अध्याय3 श्लोक32 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 3 : कर्म योग

अ 03 : श 32

ये त्वेतदभ्यसूयन्तो नानुतिष्ठन्ति मे मतम्‌ ।
सर्वज्ञानविमूढांस्तान्विद्धि नष्टानचेतसः ॥

संधि विच्छेद

ये त्व एतद अभ्यसूयन्तो न अनुतिष्ठन्ति मे मतम्‌ ।
सर्व ज्ञान विमूढान् तान विद्धि नष्टान अचेतसः॥

अनुवाद

[हे अर्जुन!] परन्तु जो [मनुष्य] मेरा तिरस्कार करके (मुझमे अविश्वास करके) मेरे मत का अनुसरण नहीं करते, यह जान लो कि वे सभी ज्ञान से वंचित होकर पतन को प्राप्त होते हैं और [इस भौतिक संसार में] भटक जाते हैं|

व्याख्या

इसके पहले दो श्लोको में भगवान ने यह स्पस्ट किया कि वैसे भक्त जो ईश्वर (श्री कृष्ण) में अटूट श्रद्धा रखते हुए भगवान को साक्षी मानकर अपने कर्तव्य का पालन करते हैं वे कर्मो के बंधन से मुक्त हो जाते हैं|
लेकिन वे मनुष्य जो मनुष्य भगवान श्री कृष्ण का तिरस्कार करते जुए कर्म के इस पवित्र सिद्धांत का अपमान करते है वे इस मनुष्य शरीर के रूप में प्राप्त अवसर को नष्ट कर देते हैं| वे भौतिक इक्षाओ के पीछे पीछे भागते हुए संसार की भूल भुलैया में भटक जाते हैं| ऐसे मनुष्यों का भविष्य अनिश्चित होता है|