अध्याय3 श्लोक38 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 3 : कर्म योग

अ 03 : श 38

धूमेनाव्रियते वह्निर्यथादर्शो मलेन च।
यथोल्बेनावृतो गर्भस्तथा तेनेदमावृतम्‌ ॥

संधि विच्छेद

ध्रूमेन अव्रियते बह्निः यथा अदर्शो मलेन च
यथा उल्बेन अव्रियते गर्भः तथा तेन इदम् आवृतम्

अनुवाद

जिस प्रकार धुआं अग्नि को और धूल दर्पण को ढँक लेता है तथा जिस प्रकार जेर गर्भ को ढँकता है , वैसे ही काम(वासना) ज्ञान को ढँक लेता है ॥

व्याख्या

इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने कम(वासना) का ज्ञान के ऊपर पडने वाले दुष्प्रभाव का वर्णन किया है| जिस प्रकार धुंए से अग्नि ढँक कर मलीन हो जाती है और जिस प्रकार दर्पण पर धुल की परत पड़ जाये तो दर्पण निष्प्रभावी हो जाता है वैसे ही जब मनुष्य वासना के अधीन होता है तो उसका ज्ञान निष्प्रभावी हो जाता है| वैसा मानुष कुछ भी उचित सोचने से वंचित हो जाता है| उसके लिए सच और झूठ, अच्छे और बुरे में भेद करने की शक्ति नहीं रह जाती| वैसी अवस्था में मनुष्य अक्सर दुष्कर्म के मार्ग पर अग्रसर हो जाता है|