अध्याय3 श्लोक39 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 3 : कर्म योग

अ 03 : श 39

आवृतं ज्ञानमेतेन ज्ञानिनो नित्यवैरिणा ।
कामरूपेण कौन्तेय दुष्पूरेणानलेन च ॥

संधि विच्छेद

आवृतं ज्ञानं एतेन ज्ञानिनो नित्य वैरिणा ।
काम रूपेण कौन्तेय दुष्पूरेण अनलेन च ॥

अनुवाद

हे अर्जुन ! यह काम(वासना) अग्नि के समान कभी संतुष्ट नहीं होता | यह ज्ञान प्राप्ति का बाधक है और ज्ञानियों का नित्य वैरी (शत्रु) है|

व्याख्या

इस श्लोक में भी वासना का ज्ञान के ऊपर पडने वाले दुष्प्रभाव का वर्णन है| इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने यह स्पस्ट किया है कि वासना सिर्फ साधारण मनुष्यों के लिए ही घातक नहीं बल्कि ज्ञानियों के लिए हानिकारक है| वासना ज्ञान प्राप्ति के मार्ग में एक बड़ी बाधा है| एक ज्ञानी जो ज्ञान प्राप्ति के मार्ग में प्रयासरत है, अगर वासना के प्रभाव में आ गया तो उसके ज्ञान प्राप्ति में बाधा आ सकती है| इसलिए ज्ञानियों को वासना उत्पन्न करने वली राजसिक वातावरण से दूर रहना चाहिए|
शायद यह एक कारण है कि वेदिक युग में छात्र आबादी से दूर जाकर शिक्षा प्राप्त करते थे और हमारे ऋषि, मुनि सात्विक वातावरण में आश्रम बनाकर रहते थे|