अध्याय3 श्लोक40 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 3 : कर्म योग

अ 03 : श 40

इन्द्रियाणि मनो बुद्धिरस्याधिष्ठानमुच्यते ।
एतैर्विमोहयत्येष ज्ञानमावृत्य देहिनम्‌ ॥

संधि विच्छेद

इन्द्रियाणि मनः बुद्धिः अस्य अधिष्ठानम् उच्यते ।
एतैः विमोहयति एष ज्ञानम् आवृत्य देहिनम्‌ ॥

अनुवाद

इन्द्रियाँ, मन और बुद्धि इस वासना(काम) के निवास स्थान हैं| यह काम(वासना) ज्ञान को ढककर मनुष्य को भ्रमित करता है॥

व्याख्या

काम(वासना) या कई प्रकार के व्यसन जैसे धूम्रपान, मद्यपान को धारण करना बहुत आसान है, लकिन इनका त्याग करना उतना ही कठिन है| इसका कारण यह है कि वासना मनुष्य के अंगों, मस्तिस्क और बुधि पर एक साथ प्रभाव डालता हैं, एक प्रकार से मनुष्य पूरी तरह से इसके चंगुल में हो जाता है| इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण वासना(काम) इस इस भयानक गुण का वर्णन कर रहे हैं|
हम जानते हैं कि इन्द्रियां, मन और बुद्धि मनुष्य के अस्तिस्त्व के मुख्य केन्द्र हैं| अगर यह तीनों ही दूषित हो जाएँ तो ऐसी स्थिति में मनुष्य का गलत मार्ग पर जाना बहुत आसान हो जाता है|