अध्याय3 श्लोक41 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 3 : कर्म योग

अ 03 : श 41

तस्मात्त्वमिन्द्रियाण्यादौ नियम्य भरतर्षभ ।
पाप्मानं प्रजहि ह्येनं ज्ञानविज्ञाननाशनम्‌ ॥

संधि विच्छेद

तस्मात् त्वं इन्द्रियाणि अदौ नियम्य भरतर्षभ ।
पाप्मानं प्रजहि हि एनम् ज्ञान विज्ञान नाशनम्‌ ॥

अनुवाद

इसलिए हे अर्जुन ! सर्वप्रथम तुम इन इन्द्रियों पर नियंत्रण करों और ज्ञान का नाश करने वाले इस काम(वासना) को दृढ़ता पूर्वक वश में करों |

व्याख्या

पिछले श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने बताया कि वासना एक साथ इन्द्रियां, मन और बुद्धि को प्रभावित करता है और अपने वश में ले लेता है|
इस श्लोक में भगवान ने वासना के ऊपर विजय प्राप्त करने का उपाय बता रहे हैं| भगवान ने कहा कि जो मनुष्य वासना के ऊपर विजय प्राप्त करना चाहते हैं |उन्हें सबसे पहले अपने इन्द्रियों को वश में करना चाहिए| हमे यह ज्ञात होना चाहिए कि इन्द्रियां स्थूल अंग हैं इसलिए इनको वश में करना भौतिक रूप से आसान हैं | हठयोग, उपवास, साधना आदि कई ऐसे मार्ग हैं जिससे इन्द्रियों को वश में किया जा सकता है| इन्द्रियों को वश में आने से मन भी शांत होता है और जब मन शांत होता है तो बुधि भी पवित्र होती है|